गाड़ियां बिजली से दौड़े, पेट्रोल डीजल पर निर्भरता कम हो, हवा साफ हो, यह अच्छा कांसेप्ट है। इसीलिए ईवी की पॉलिसी इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल्स की पॉलिसी देश में लाई गई थी। कुछ महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए। साल 2030 तक कितनी निजी कारें इलेक्ट्रिक से चलेंगी, इलेक्ट्रिक व्हीकल हो जाएंगी, कितनी बसें ईवी होंगी, यह आउटलुक हमारे सामने रखा गया। लेकिन चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स और बैटरी की सप्लाई में अड़ंगा लगाकर इस मिशन को मुश्किल कर दिया है। सीन ऐसा बना है कि भारत अब विकल्प तलाश रहा है। विकल्प ऐसे कि शायद केंद्र की मोदी सरकार ईवी को लेकर अपनी पॉलिसी में ही बड़े लेवल के चेंज करे। तो भारत के सामने रास्ते क्या हैं?
आज इस पर बात करेंगे। साथ ही जानेंगे इंडिया यूएस ट्रेड डील से जुड़े जरूरी अपडेट्स।
आपको मालूम है कि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों यानी ईवी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें कई स्कीम्स चला रही हैं। इसके तहत ईवी खरीदने वालों से लेकर इन वाहनों को बनाने वाली कंपनियों तक को छूट दी जा रही है। मंशा जैसा कि हमने कुछ देर पहले बताया मंशा ये कि प्रदूषण घटे पेट्रोल डीजल की खपत में कमी आए लेकिन भारत का ईवी का सपना मुश्किल में है क्योंकि चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स और इन वाहनों को बनाने में काम आने वाले कुछ जरूरी कंपोनेंट्स पर सख्त पाबंदियां लगा दी हैं। रेयर अर्थ मैग्नेट्स क्या है? खास तरह के चुंबक हैं जो 17 खास धातुओं के समूह से बनाए जाते हैं। इन धातुओं को रेयर अर्थ एलिमेंट्स कहते हैं और इन मैग्नेट्स के प्रोडक्शन में चीन को महारत हासिल है। बाकी इन चुंबकों का काम क्या है? ये क्या करते हैं? और गाड़ियों में इनकी जरूरत क्यों है? यह हमने खर्चा पानी के पुराने एपिसोड में आपको विस्तार से बताया है। आप जानना चाहें तो डिस्क्रिप्शन में मौजूद लिंक पर जाकर देख सकते हैं। वेयर द सॉफ्टवेयर इंजीनियर मीट्स द टैलेंटेड फोटोग्राफर द वर्ल्ड कम्स टुगेदर एट शारदा यूनिवर्सिटी। इन्हीं मैग्नेट्स के एक्सपोर्ट पर चीन ने 4 अप्रैल 2025 से पाबंदियां लगाई हैं। इन्हीं प्रतिबंधों के चलते भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और सप्लाई चेन पे जबरदस्त असर पड़ रहा है। कई ईवी कंपनियों ने तो उत्पादन घटाना भी शुरू कर दिया है। यह भी हम आपको पहले बता चुके हैं। लेकिन जरूरी यह जानना है कि संकट कितना बड़ा है और भारत के ईवी गोल पर इसका कितना असर पड़ेगा और संकट समझने के लिए भारत में ईवी मार्केट का बेसिक्स समझ लीजिए। वित्त वर्ष 204-25 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 17% तक बढ़ गई है। इस दौरान 19.7 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए। साल 2024 में कुल वाहन बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी 7.44% थी। साल 2019 में अभी से छ साल पहले देश में 1% से भी कम इलेक्ट्रिक वाहन बिके थे। कुछ रिपोर्ट्स में अनुमान लगाया गया है कि कुछ सब कुछ ठीक रहा तो साल 2030 तक ईवी की हिस्सेदारी कुल वाहन बिक्री का 30 से 35% तक हो सकता है। अब आप मार्केट जान गए। अब हम दो रिपोर्ट्स का रुख करेंगे। पहली रिपोर्ट है इंडियन एक्सप्रेस में छपी अनिल सा की रिपोर्ट। इसमें कहा गया है कि चीन के इस कदम से भारत सरकार के शीर्ष पद पर आसीन अधिकारियों और नीति निर्माताओं के बीच मीटिंग्स हो रही हैं। बड़े लेवल के अफसर्स के बीच मीटिंग्स का एजेंडा कि आगे से किसी भी गाड़ी की टेक्नोलॉजी चुनते समय एक बात का ध्यान रखा जाए। ध्यान इस बात का कि अगर गाड़ी के किसी कॉमोनेंट की सप्लाई कर रहे किन्हीं देशों में अगर किसी तरह की दिक्कत पैदा होती है तो भारत के पास क्या रास्ता होगा? यानी अगर चीन की ओर से बैन लंबा चलता है या किसी और देश के साथ दिक्कत पैदा होती है तो भारत के पास एक विकल्प हमेशा मौजूद रहे। चर्चा यह भी हो रही है कि क्या वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाने के लिए क्या सिर्फ बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों यानी बीईवी को बढ़ावा देना क्या चीन के हाथों में खेलने जैसा तो नहीं है। मतलब यह है कि हम बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर कहीं अपनी ही इंटरनल कंबस्शन इंजंस आईसी यानी गाड़ी में लगने वाला इंजन है समझ लीजिए और गाड़ियों के कल पुर्जजे बनाने वाली अन्य कंपनियों के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे हैं। बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन तो आप समझ ही गए होंगे लिथियम आयन बैटरी से चलने वाली गाड़ियां Tata Nexon, EV, Mahindra, B6 वगैरह यह सब गाड़ियां इसमें आती हैं। साफ शब्दों में कहें तो चीन के प्रतिबंधों से जूझता भारत अब इस मौके को एक अवसर की तरह देख रहा है। ब्लेसिंग इन डिसगाइस टाइप का केस। जैसे एक शीर्ष अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि चीन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध कुछ मायनों में समय के अनुकूल हैं। यह किसी व्यक्ति की कोकेन सप्लाई को रोक देने जैसा है जब उसे लत लग रही हो। अच्छा है कि यह अब हुआ है। अब इस नीति पर पुनर्विचार किया जा रहा है। फिलहाल सरकार की जो नीति है वो पूरी तरह से बैटरी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स बीईवीस के फेवर में है। इन वाहनों पर सिर्फ 5% का टैक्स लगाया जाता है। जबकि ज्यादातर अन्य श्रेणी के वाहनों पर 43 से 48% से अधिक टैक्स लगाया जाता है। सवाल यह है कि सरकार बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों पर इतनी मोटी छूट दे क्यों रही है?
दरअसल भारत ने साल 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों यानी ईवी के लिए लक्ष्य तय किए हैं। वही बात जो हम अभी इंट्रो में बता रहे थे आपको। इस लक्ष्य को ईवी30 एट 2030 के तहत जाना जाता है। लक्ष्य क्या है? सभी नई रजिस्टर्ड निजी कारों में से 30% इलेक्ट्रिक होंगी। सभी नई रजिस्टर्ड बसों में से 40% इलेक्ट्रिक होंगी। नई रजिस्टर्ड कमर्शियल कारों जैसे टैक्सी वगैरह में 70% इलेक्ट्रिक गाड़ियां होंगी और 80% दोपहिया और तिपहिया वाहन इलेक्ट्रिक होंगे। यानी सरकार का पुश है कि लोग ईवी की ओर बढ़े लेकिन मामला प्रोडक्शन पर अटका है। तो शायद मोदी सरकार अपनी नीति को पूरी तरह से चेंज कर डाले। ऐसी संभावनाएं जताई जा रही है। लेकिन पॉलिसी चेंज इतना आसान नहीं होगा क्योंकि चीन का रेयर अर्थ मैग्नेट्स ही नहीं बल्कि पूरे ईवी के इकोसिस्टम से उस पूरे सिस्टम पे ही काफी दबदबा है। हम क्यों ऐसा कह रहे हैं? रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2030 तक भारत में लिथियम आयन बैटरी की मांग सालाना जो है वो 30% से अधिक बढ़ सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि देश को केवल ईवी बैटरी बनाने के लिए 500 टन से अधिक लिथियम की जरूरत होगी। लेकिन दिक्कत यह है कि वैश्विक लिथियम यानी दुनिया भर में जो लिथियम है उसका जो 90% प्रोडक्शन है वो ऑस्ट्रेलिया और चीन और इनके साथ-साथ चिली, अर्जेंटीना और बोलीविया में होता है। वहीं कोबाल्ट और निक जैसे अन्य जो महत्वपूर्ण एलिमेंट्स हैं, इनपुट्स हैं वो कांगो और इंडोनेशिया में उनका खनन होता है। इसलिए भारत को अपनी मांग को पूरा करने के लिए लगभग पूरी तरह से कुछ देशों से ही आयात पर निर्भर रहना होगा जबकि लिथियम आयन के अन्य विकल्पों की खोज की जा रही है। ये तो एक रिपोर्ट के हवाले से बात हो गई। हमने दो रिपोर्ट की बात हो की थी। तो अब अगली रिपोर्ट है। ये है इकोनॉमिक टाइम्स में छपी हुई रतांकर मुखर्जी की लिखी एक खबर। इसमें कहा गया है कि अब भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां चीनी निवेश और साझेदारी से दूरी बनाकर दक्षिण कोरिया, साउथ कोरिया, ताइवान और जापान की कंपनियों के साथ जॉइंट वेंचर यानी साझेदारी में काम शुरू करने की तैयारी में है। यह एक रिटेलिएटरी कदम भी हो सकता है। चीन की ओर से लगाए जा रहे प्रतिबंध जिसमें रेयर ऑफ़ मैगनेट्स वाला हो गया और भारत की ओर से एफडीआई पर बढ़ाई गई सख्ती के तहत लिया गया रिटेलिएटरी कदम है यह। जो इंडियन कंपनियां चीनी कंपनीज़ के साथ दूरी बना रही हैं, जॉइंट वेंचर से दूरी बना रही हैं, उनके नाम आप स्क्रीन पर देख सकते हैं। शायद आगे आने वाले दिनों में एक नया इकोसिस्टम देखने को मिले। जहां पर चीन से निर्भरता हमारी जो है और साझेदारी जो है वो कम हो। इस खबर में फिलहाल इतना ही अपडेट्स। तो आप तक लेकर आएंगे ही। अब अगली छोटी खबर यूएस प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने 14 देशों पर नए आयात शुल्क यानी टेरिफ इंपोर्ट टेरिफ लगाए हैं जो 1 अगस्त 2025 से लागू होंगे यह टेरिफ। यूएस प्रेसिडेंट डोनल्ड ट्रंप ने इन देशों के प्रतिनिधियों को ट्रेड लेटर भेजा है और इनके बारे में जानकारी दी है। हालांकि भारत के लिए अच्छी बात यह है कि हम हमारा नाम इस लिस्ट में शामिल नहीं है क्योंकि डॉन्ड ट्रंप ने संकेत दिए हैं कि भारत के साथ व्यापार समझौता जल्द होने वाला है। भारत की डेडलाइन 9 जुलाई को खत्म हो रही है। इस बीच खबरें यह भी हैं कि अमेरिका ने संकेत दिया है कि वो 1 अगस्त तक वार्ता जारी रखने की अनुमति दे सकता है। खबरें यह भी बताती हैं कि भारत ने अपने कोर सेक्टर जिसमें भारत की एक बड़ी आबादी इनवॉल्व है प्रोडक्शन में उसको लेकर कुछ रिजर्वेशंस अमेरिका के सामने जाहिर किए हैं। अमेरिका का अब इस पर जवाब आना है। भारतीय अधिकारी इसका इंतजार कर रहे हैं। लेकिन यह सब कुछ सूत्रों के हवाले से हो रहा है। जाते-जाते उन देशों की लिस्ट भी देख लेते हैं जिन पर ट्रंप ने टेरिफ का अपना बम फोड़ा है। जापान पे 25%, साउथ कोरिया पे 25%, म्यांमार 40%, लाओस 40, साउथ अफ्रीका 30, कजाकिस्तान 25, मलेशिया 25, ट्यूनेशिया 25, इंडोनेशिया 32, बोसिया 30, बांग्लादेश 35, सर्बिया 35, कंबोडिया 36, थाईलैंड 36। बाकी इस बारे में अगर आप विस्तार से जानना चाहते हैं तो आप दुनियादारी का जो हमारा वर्ल्ड अफेयर्स बुलेटिन है उसका आज का एपिसोड जरूर देखें। बैटरी सप्लाई चेन की 75 से 80% जो सप्लाई चेन का हिस्सा है उस पे चाइना का दबदबा है। अब ये हमारा जो ये रेयर अर्थ मैगनेट का जो शॉर्टेज अभी सप्लाई चेन शॉर्टेज जो अभी ये चल रहा है। ये एक सप्लाई चेन डिरप्शन सिर्फ नहीं है। ये एक जिओ स्ट्रेटेजिक डिपेंडेंसी का सिग्नल है। जिसे हम लोग बहुत पहले फोर्सी नहीं कर पाए और उसका नतीजा ये है कि हम यहां तक ये यात्रा करते-करते पहुंच चुके हैं। अब भारत के लिए सबसे कठिन सवाल ये है कि क्या हम एक ऐसी टेक्नोलॉजी पे अपना नेट जीरो टारगेट आधारित करें जिस पे हमारा कंट्रोल ही नहीं है या फिर या फिर हम आईसीस को साथ रखते हुए और विकल्पों को हम सामने लाए जैसे कि हाइब्रिड टेक्नोलॉजी हो गए इथेनॉल ब्लेंडेड फ्यूल हो गए या फिर हाइड्रोजन फ्यूल हो गए। बाकी आज का खर्चा पानी यहीं तक। इसे लिखा था हमारे साथी प्रदीप यादव ने। अपना ख्याल रखिएगा, स्वस्थ रहिएगा। बहुत-बहुत शुक्रिया।
: China ने इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाला जरूरी सामान रोका, भारत के पास क्या रास्ता? | EV | Kharcha Pani
China ने इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाला जरूरी सामान रोका, भारत के पास क्या रास्ता? | EV | Kharcha Pani
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